गालिब थे हवालात मे...!...

गालिब थे हवालात मे...
हम भी थे साथ मे...
आखिर बोल ही दिए बहके जज्बात मे...
कैसे टिप्पणी कर देते हो हर बात मे...
हम भी बह गए बहाव मे...
शायद थोडे उनके प्रभाव मे...
गम भुलाके एक-एक जाम मे...

जब गुजरी आधी रात तो उठ खडे हुए अचानक और लगे चिल्लानें...
पूरे जेल को लगे शाँति का पाठ पढानें...
थक हार के चौकीदार ने अपने हाथों से पैग पिलाया...
और सामने वाली पट्टी पे दे पटक सुलाया...

अगला दिन निकला आखिरकार हार के...
लाया हमारी जमानत बिना बवाल के...
जाते हुए गालिब दिल कि बात बोल दिए...
लिखने कि एक कला हमकों सस्तें मे तोल दिए...

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