मेरा देश बचा लो...!...

मेरे देश को बचा लो...
धर्म-जात कि लडाईं मे कहीं इंसानियत ना गवाँ लो...
मत फूकों मेरे देश को नफरत कि आग मे...
कहीं तूम भी भस्म ना हो जाऊ दोजख की राख मे...

सियासत कि अंधी दौड लगी है...
लूट लू इज्जत बचाने के लिए राजनाति खडी है...
मेरे देश कि आन-बान-शान दाँव पर लगी है...
पर कमबख्त देश कि किसकों पडी है...

छीटों से दामन यहाँ हर किसी का सन पडा...
किसी का खून से तो किसी पे है कीचड लगा...
किसी का उछला तो किसी का है दवाँ पडा...
शर्म करो इंसान से तो है जानवर भला...

नफरत का दुर्गंध घुली है फिजाओं में...
तुम प्रेम का रंग घोलके प्यार भर दू हवाओं में...
नफरत कि काली रात मिटा दूँ सुरज कि सुर्ख गवाही मे...
कहीं मिट ना जाएँ इंसानियत तुम्हारी इस तबाही मे...

अरे जरा सोचों कैसे बताऊगें आने वाली पीढी कों...
जात-पात के नाम क्यों लडे थे कैसे समझाऊगें उनकों..
खुन से सने चेहरे से कैसे लोरी सुनाऊगें उनकों...
नफरत कि खेती खुद करके क्या फसल खिलाऊगें उनकों...

दोनो हाथ जोडके कहता हूँ मेरा देश बचालों इस नफरत की आग से...
सबकुछ जलकर भस्म हो जाएँगा इस खून कि राख से...
मेरा देश बचा लो...
धर्म-जात कि लडाई मे कहीं इंसानियत ना गवाँ लो...

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