खिडकी
एक खिडकी कुछ अलग सी,देखता पर दिखता उससे बाहर कुछ नही...
जतन हजार किए कि दिखे कुछ या कोई, पर निराशा के अतिरिक्त कुछ मिला नही...
निराशा मे भी ना आशा तोडीं मैने,देखना उस खिडकी से मैने छोडा नही...
ये खिडकी से दिखता है निर्माण स्थल,ये मेरा भ्रम था नही...
स्थल का भ्रमण किया मैने, सूक्ष्म है स्थल मात्र विशाल ही नही...
स्थल अस्थिर है,स्थल पर मिला कोई एक आयाम नही...
अस्थिरता अस्थाई है, स्थाई आयाम पर रूकना सरल नही...
सरल कठिन है, कठिन होना सरल नही...
एक आयाम पे रूकना कठिन, भ्रमण भ्रमित करता है नही...
स्थल भ्रमण सूक्ष्म, सूक्ष्मता करती भ्रमित नही...
विशाल स्थल का सुक्ष्म भ्रमण, सुक्ष्म स्थल का विशाल भ्रमण एक सा होगा नही...
एक साथ करना है दोनों, खानाबदोश होगा भ्रमित नही...
तथाकथित खिडकी बंद मिली, दर्शन कुछ हुए नही...
दर्शन किया तो बंद कुछ मिला नही...
ये खिडकी कुछ अजीब सी, इस खिडकी से बाहर का कुछ दिखता नही...
फटा है आयाम का कपडा मेरा,ये खिडकी पर डाला था किसी ने पर्दा क्यो नही...
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