तेरी याद:अध्याय २...!...

तेरी रूह जो मेरी रूह मे अभी बाकि है नष्ट करना कठिन है उसे काल के लिए....

लौटने कि शून्य उम्मीद फिर भी ना नाउम्मीद हूँ बस एक मुक्कमल मुलाकात के लिए... 

बेवजह बेकार मे बेकरार हूँ बस बरसात के लिए...
बेबस मन से हाथी के पीछें बेसुध खडा समागम के लिए...

कल्पनाओं के बगीचें को सरस्वती की धारा सें सींचू किसलिए...
जब तेरी रूह ही नही खटखटाती है तेरे मन कों लौटनें के लिए...

नामौजूदगी तेरी काफी है इस जिंदगी के नाकाफीं होने के लिए...
बेदर्द थी पहले भी जिदंगी और अब तों ना कुछ बाकिं है खोनें के लिए...

तू चाहिए मुझें अब इस कदर जैंसें रात मे आँक्सीजन वृक्षों के लिए... 
तू चाहें या ना चाहें पर ये अपरिपक्व बना हैं बस इबादत के लिए...

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