दंगा था...!...
भागता वो यों हाँफता सा क्योंकि जिंदगी से उसका राबता था...
जल्दी उसे थी ना कोईं बस जिंदगी मे एक छोटा सा ख्वाब था...
भीड जों पीछें पडीं उसका बस एक ही विषयनिष्ठ था...
मारना था उसें क्योंकिं दोनों का ना एक धर्म था...
बचपन से ही उसका दिल थोडा कमजोर था...
साँसों थी फूल चुकिं, ना पैरों मे अब जोर था...
अंतहीन जिंदगी का अंत अब उसकी आँखों मे था..
खून कि राख में उसें अपना शव अब दिखने लगा था...
डूबतें कों तिनकें का सहारा किंतु मिल ही गया था...
एक भवन का कपाट उसकें लिए खुला था...
सहमीं हुईं हर आँखें उसें निहार रही थी...
पुकार रहीं उसे उसकीं जिंदगी थी...
किंतु पंरतु पीछें पडें उन जीव-जन्तुं कों यें नामंजूर था...
राष्ट्रवाद का उन्हें अब खेला एक गंदा खेल था...
जन गण मन अधिनायक कि ध्वनि माहौल मे था
रूक गया वों लडका क्योंकिं जिंदगी से पहले उसके लिए देश था...
सीना तानकें भीड के समक्ष अब वों खडा था...
पलकें उसकी ना झपकती देख भीड का भी दुस्साहस घटा था...
फिर भी दरिंदों के कदम एक पल कों भी ना रूकें थें...
"भारत भाग्य विधाता........"
राष्ट्रगान अभी उसका अधुरा था....
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