भारत माँ कि व्यथा...!...
अखंड को अभी खडिंत होना बाकिं हैं...
कट चुकी टुकडो मे लेकिन अभी कटना बाकिं है...
घात लगाए भेडिये नोचने को तैयार है...
मेरी चिंता किसे मेरे से किसको अनुराग है...
सीमा पर मेरी,मेरे बेटो का पहरा है...
पर क्या करू इस गंदे नाले का जो मुझमे बह रहा है...
भ्रष्ट मेरे कितने बेटे काटने को मुझे ही तैयार है...
देशद्रोह पर उतर चुके ये सारे गद्दार है...
नेता मेरे ऐसे कहते मुझसे बडा प्यार है...
पैर छुते-छुते पायल चुरा ले गहन इतना इनका प्यार है...
धर्म-जाति के पल पल पीटते ये गाल है...
अरे मासूमों धर्म तो बस इनका गद्दी तक पहुँचने का द्वार है...
निराहार सोता मेरा एक बच्चा वही दूसरा थाली फेकता है...
दर्द होता मुझे दोनो से लेकिन नशेड़ी ज्यादा मेरी खाल खींचता है...
घर-घर रोती-बिलखती मेरी बेटी मुझे बडा रूलाती है...
आबरू लूटी बेटी मुझे नोच-नोच के खाती है...
किसके आगे रखो व्यथा अपनी मेरे कुछ बेटे मेरे खडिंत अंग के बाप बने बैठे है...
दर्द देता वो जख्म आज भी मुझे जिसे पाकिस्तान कहते है...
विलय करो ना उसका मुझमे शौर्य यदिं तुमने इतना है...
ना करो गर कुछ तो नासूर को छेडना भी मना है...
देश छोड मेरे संप्रदाय के लिए बता क्या किया है...
बता मेरे नेता मेरे एक मोहल्ले ने तुझे अपना कीमती मत दिया है...
गाँव से शहर,शहर से राज्य और राज्य से ना कभी ऊपर उठा है...
देश कि क्या बात करते हो देशभक्ति भी यहाँ एक मुद्दा बना है...
कही भी,कैसे भी,कभी भी मार दो किसी को भी,अखबार मे छपने के लिए कागज बहुत पडा है...
इंसान था मरने वाला ये जानना जरूरी नही,इंसानियत मे क्या धरा है...
गिद्धों के बद्तर जिंदों को भी नोचने के लिए इंसान खडा है...
भारत,भारत के अलावा बाकि सबकुछ बन चुका है...
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