एक बांझ कथा...!...

मै हूँ अभागन बेटी एक अभागन माँ की...
सडक पर जब मै निकलो तो देते है गाली माँ-बहन की...
 हाँ मै हूँ एक बाँझ बेटी एक बाँझ माँ कि...
 ‎जिसने बचाया मुझे नजर से हर किसी की...

 ‎ये मर्द कि खाल ओढे ना मर्दो कि भीड मे...
 ‎अपने पैरो पर खडी मै एक एम.एन.सी. मे...
 ‎मै पूछती हूँ इस समाज से मै भी रहती इस समाज मे...
 ‎सिर्फ बाँझ होने से क्या रहने का हक नही है मुझे इस समाज मे...
 ‎
 ‎आज मै लिख रही हूँ दर्द अपना...
 ‎है कोई खरीदार है जिसके लिए सुहागन बनके मुझे है संजना...
 ‎या सारी जिदंगी अभागन बनके सुनसान सडको पर है लज्जना...

बीत्ति हुयी अंधेरे मे मेरी जिदंगी मे...
अचानक कोई आया मेरे सफर मे...
मासूम सी लगती थी बिल्कुल बार्बी कि गुडिया...
अनाथालय मे मिली थी क्योकि बचपन मे खुल गयी उसके बाँझपन के राज कि पूडिया...

और शूरू हो गयी फिर से एक बाँझ कथा...
संघर्ष कि एक और प्रथा एक और व्यथा...

टिप्पणियाँ