एक मानसिक रोगी...

क्या रोज रोज के डरामे।साला जिंदगी झंड कर रखी है।इससे अच्छा तो परिवार ना हो तो अच्छा है।बुडबडाते हुए मैने फोन रख दिया और जाके रिक्शा के इंतजार मे सडक पर पहुँच गया।सामने से आती एक रिक्शा देख तो ऐसा लगा मानो बिन ब्याही लडकी के लिए दामाद ढुंढ लिया।नजदीक आते ही मैने कहाँ बस अड्डा १० रूपय।वो बोला ₹१५।पर मै तो ठहरा कताई बनिया,₹१० पर ही अडा रहा।और फिर वो मान गया।अब बैठ के चल दिए फटाफट क्योकि दिल वालो कि दिल्ली पहुँचना था मुझे।थोडी सी आगे चले ही तो रिक्शा मे बहुत से बहुत १९ साल का सफेद रंग और ब्रंडिड मैले कपडे पहने चढा।काफी उत्तसाहित सा था।सो स्वाभाविक था भई युवा उमर थी।बैठते ही रिक्शे वाले से बोला भईया जल्दी चलो मेरे बडे भाई इंतजार कर रहे है।गजियाबाद मे जोब करते है और आज घर पर आ रहे है और घर कि चाबी मेरी पास है।इसलिए जल्दी चलो।हमने उसकी तरफ देखकर थोडी मंदी मुस्कान दी और उसने हमसे वर्तालाप शुरू करदी।वो बोला मेरी बडी बहन कि शादी हुयी है अभी अभी और मम्मी ज्यादातर शोपिंग मे बिजी रहती है।अरे भईया चलते रहो जिसको आके बैठना होगा अपने आप बैठ जाएँगा।एकदम चिल्लाए वो।फिर बोला बार बार फोन आ रहा है साला और यह चल ही नही रहे।हमे मे थोडी जल्दी थी इसलिए हम भी उसकी हाँ मे हाँ मिला रहे थे।थोडी देर मे उसने फोन निकाला और बात करने लगा।मुझे थोडा अजीब लगा पर मैने इंग्नोर कर दिया।फिर उसने थोडी देर बाद फोन निकाला पर अबकी बार मैने ध्यान से देखा तो फोन तो किसी का आ ही नही रहा था।वो ऐसी बात कर रहा था।मुझै लगा शायद रिक्शै वाले को चुतिया बना रहा था।पर जब उसने रिक्शै वाले को ही फोन दे दिया तो मेरी हवा ताईट हो गयी।मै हल्का-हल्का उसे ऊपर से नीचे तक घुरने लगा।थोडी देर युहिं चलता रहा और बाईक पर एक दपंती पीछे से आ रहे थे।उन्हे देखकर लडके ने कहा चाचा-चाची जी नमस्ते।संयोगवश मेरे भी परिचित थे तो मैने भी राम राम कर दी।फिर वो दोनो उससे बोले उस लडके कहाँ जा रहा है...वो तपाक से बोला अरे चाचा आपको तो पता ही है भईया गजियाबाद मे है और आज आ रहे है और चाबी मेरे पास है।इसलिए जल्दी कह रहा इनको पर यह चल ही नही रे।है....रोक..रोक...रोक साईड मे रोक बे।वो चिल्लाए फिर दोनो बाईक पे से फटाफट उतरे और आके उसके मुँह पर पानी-वानी मारा,उसे हिला-डुलाया।उससे एकदम होश सा आया और बोला मै यहाँ कैसे आया।मै तो कोलिज मे था।यहाँ कैसे पहुँचा मै।उसे एक दुकान मे बैठाया और पानी पिलाया।फिर मैने उसके चाचा से पुछा कैसे सब ठीक-ठाक।वो बोले अरे ये मेरा भतिजा है।दस महिने पहले इसके बहन-भाई और मम्मी-पापा एक शादी मे जा रहे थे।ये घर पर था।और उनका हो गया ऐंकसिडेंट।सब के सब ओन दा स्पोट.....
मेरे मुख से अनावेश ही निकला हे राम!!!
सामने मेरे बस थी जो चिल्ला रही थी दिल्ली.. दिल्ली... मै उस बस मे चढ गया।बस मे बैठते ही मेरा फोन बजा जोकि घर से था।मैने फोन उठाया और कहाँ हाँ एक काम करो जो चाहिए उसकी लिस्ट मुझे व्टस्सप कर दो।उन्होने कहाँ पैसे..तो मै बोला तुमसे ज्यादा है क्या।बहार चलते हुए पेडों देखकर मन मे बस एक ख्याल आ रहा था मानसिक रोगी वो था या मै....