रोडवेज

उलझीं जिंदगी और अनजान सफर।एकरोज सफर पर निकलें होकें हवाओं से बेखबर।ज्यों ही सिटीं बस मे चढें त्यों ही आगें के दरवाजे से बिना ब्रेक के तीन बिल्लियों ने रस्ता काट दिया।वो बिल्लियाँ इतनी उलझीं हुयीं थी कि उनकीं उलझन ने हमे भी उलझा दिया और हमें ठीक अपने सामने बैठा दिया।अब हम हालात को परख कर चेहरों को सुलझा दिए और नजरें अपनी खिडकीं के बाहर जमा दिए ताकि काम भी हो जाएँ और बेगैरती भी ना दिखें।मुर्दा सी पडीं उस बस मे बस उन बिल्लियों कि खिल-खिलाहट सुनाईं पड रहीं थी।अचानक से ट्रेंन के ऊपर हमारीं बस चढ गईं और फिर जब उतरीं तो उन बिल्लियों का सफर खत्म हो गया।उनकें जातें ही बस कि खिलखिलाहट ऐसें अदृश्य हो गयीं जैसे गधें के सर से सिंग।

फिर नजरों जो खिडकीं के बाहर थी वो जब अंदर आईं तो देंखा कि ठीक हमारे सामनें दो कोतवाल अपनी जिंदगी हसीं के धुएं मे उडा रहे थे।वैसें तो ज्यादातर इन लोगों को गंभीर मुर्दा मे ही देखा है किंतुं आज अभास हुआ कि इनकीं भी निजी जिंदगी होती है जो सहकर्मी के साथ खोती है।उनके़ सामनें एक युवक बैठा था जिंदगी के तनाव और बौखलाहट में बिल्लियों से प्रभावित था किंतुं अब वापिस खोया खोया था।


अनजान चालक के भरोसें इस सफर के घरोंदे को सजोये था।इतना विश्वास यदि ईश्वर पर हो जा तो सफर कितना सुहाना हो जा मजिंल तो सबकीं खुबसूरत है।यह सफर भी कितना रोचक था।पीछें देख रहें थे और जाना आगें था।बार बार मुडकर देखतें और कितनीं दुरीं बाकिं है।वैसें यह पीछें मुख करके बैठने के भी फायदे है।कईं सारें लोग आपकें सामनें होते अन्यथा तो कुछ आगें तो पीछें होते है।तभीं परिचालक आया और हमारें सामनें बैठें एक शख्स को उठाया कि चल भाया तेरीं मजिंल आ गयीं।ऐसां प्रतीत हुआ कि उस नासमझ ने सोतें हुए अपना सफर व्यतीत किया और अब एक हल्की सी जाली मुस्कान के साथ विदा लिया।

बस मे पूरी तरह सन्नाटा था और हर एक को सफर से ज्यादा मंजिल का इरादा था।अबकीं बार जो उच्चक कें आगें देखा तो हमे अपनी मंजिल दिखाईं थी।यू तो वैसें वो मंजिल नहीं थी बस मजिंल तक पहुँचनें का साधन मात्र थी।किंतु अब इस सफर को विश्राम देकें नयें सफर मे चालक से कह दिए ब्रेक मार दे एकतरफ मे।