मध्यरात्रि और रेल

उफ्फ... ये रात का सन्नाटा और उसको चीरते हुए चलती ये रेलगाड़ी।कितनी विचित्र है ना ये रेल जो एक कभी ना खत्म होने वाले सफर पर निरंतर चलती रहती है।इसकी कोई मंजिल नही है,यह सफर ही इसकी मंजिल है।इस सफर पर ये तब तक चलेगी जबतक इसका लोहा नही गल जाएगा।इस सफर मे ना जाने कितने लोग इससे जुडते है और कितने ही उतर जाते है।किंतु ये रेल उनका जरा भी गम नही करती है।इसे ना तो जाने वालो का गम होता है और ना ही ये नए आने वाले का जश्न मनाती है।ना ही बीच मे उतरकर नौटंकी करने वालो के लिए रेल विचलित होती है।वो अपनी एक निश्चित गति पर गतिमान रहती है।ऐसा नही इसे इतनी तेज रफ्तार पर चलने से दर्द नही होता है, होता है।बहुत भयंकर दर्द होता है।रेल के कराहने कि आवाज सुनाई तो सबको देती है किंतु सबको बस वो एक शोर लगता है।कभी कभी कोई सिरफिरा आशिक रेल के आगे आ जाता है।ऐसा बिल्कुल नही है की रेल उससे प्रेम नही करती है।रेल उससे बेइंतहा प्रेम करती है किंतु वो रूक नही सकती है क्योंकि यदिं वो रूकिं तो उन हजार लोगो का क्या जो उस वक्त उसपर निर्भर है।उसके रूकने से उन हजार लोगों कि जिंदगी कि रफ्तार भी थम जाएगी।अतः रेल अपनी मोहब्बत कि कुर्बानी दे देती है।उफ्फ ये रेल भी ना कितनी नासमझ है...