प्रिया-एक ख्वाब!

सर्दी कि एक गर्म सी दोपहरी मे एक मुस्काराता हुआ चेहरा देखकर यश का स्वप्न उसके स्वयं के चेहरे पर भी मुस्कान बिखेरता हुआ टूट गया।यह चेहरा यश के लिए नया नही था किंतु चिंताजनक यह बात थी कि पुराना भी नही था।अभी कुछ महज तीन दिन पहले ही "प्रिया" ने यश कि जिंदगी दस्तख दी थी।ये ख्वाब जितना सुंदर था उतना ही ज्यादा यश को भयभीत करने वाला भी था।अब सवाल यह था कि उसे स्वयं को इस जाल मे फंसने से रोकना था।किंतु अबतक प्रिया यश के ख्वाब से निकल कर ख्यालों पर कब्जा कर चुकिं थी।अतः यश ने एक षड्यंत्र किया ताकि प्रिया उसको ब्लॉक कर दे व यश सरलता से इस अध्याय को नामुकम्मल कर दे।किंतु यश कि योजना पूरी तरह से विफल हो गयी।प्रिया ने मौन धारण कर लिया।हांलाकि यह मन का ब्लॉक अधिक प्रभावशाली था किंतु वास्तव मे ब्लॉक क्यो नही किया यह प्रश्नकारी था।

सालो से पिंजरे मे बंद पंछी जब पुनः उडान भरने का विफल प्रयास करता है,कुछ वैसी ही स्थिति-परिस्थिति व मनोदशा हो गयी यश की।आँखों का बांध टूट चुका था,कोई चाहिए था उसे जिसको वो कसकर गले लगा सके लेकिन आसपास कोई भी ना था।यदि कंठ से भी चीखता तो भी कोई उसकी पुकार सुनने वाला नही था।बाढ सबकुछ बहाके ले जाती है,बस यही बात बाढ को कुछ खूबरसूरत बना देती है।उस रात यश को बडी ही अच्छी नींद आयी और जब सुबह उठा तो स्वंय को पुनः उसी पिंजरे मे पाया।

"पिंजरा"- यह पिंजरा भले ही बाहर से जंग खायी हुयी लोहे की सलाखे नजर आता है किंतु इसके भीतर कल्पनाओं का अंखड ब्रह्मांड विचरण करता है।ये वो कल्पनाएं है जो व्यक्ति के अचेतन मन को अर्धचेतन मन मे मिलाकर चेतना से मिला देती है।संदर्ष कि गहराइयों मे डूबकर स्वाभाव के मोती को खोज निकलना कठिन नही रह जाता है पिंजरे मे कैद पक्षियों के लिए।यह पिंजरा खूबसूरत है व यश का तो घर है इसलिए उसके लिए बाकियों से थोडा अधिक प्रिय।

दस दिन बीत चुकें थे।किंतु यश अब भी प्रिया को भुला नही पा रहा था।उसके गालो पर पडने वाले डिंपल,उसके भूरे बाल,डिंपल के साथ आखों के नीच पडने वाले गढ्ढे,उसका मुस्कुराना और सबसे अहम उसका बात करते-करते आँखो से शर्माना।आखिर उसकी यही शर्माता हुआ चेहरा ही तो था जहा यश गिरा था।लेकिन इन सब से कोई फर्क नही पडता जब प्रिया को यश मे कुछ ऐसा पसंद नही था,शायद यश उसे पूरा का पूरा नापसंद था।अब सवाल सम्मान का था।

सम्मान,ये सम्मान भी कितना विचित्र शब्द है।इसी सम्मान के खातिर यश ने फिर कभी दोबारा कोशिश नही कि प्रिया से संपर्क साधने कि।पहला सम्मान उसका आत्मसम्मान और दुसरा सम्मान सामने वाले के निर्णय का सम्मान।आप किसी को पंसद करने के लिए स्वतंत्र है किंतु यह स्वंतत्रता सिर्फ आपके पास नही है।ऐसा भी नही है कि आप उनके बिना अधुरे हो गए हो।कभी कभी वो कुछ हमे नही मिलता है जो हम चाहते है।हमारी सारी कोशिशे विफल हो जाती और इस तरह होती है कि हम उसके लिए दोबारा कोशिश भी नही कर सकते है।किंतु यह बिल्कुल नही कि फिर किसी और कोशिश के लिए कोशिश ना कि जाए।ऐसे ही कितने सपने अधुरे रह जाते है।लेकिन हम एक नया सपना देख सकते है।फूटबॉलर बनना था क्या हुआ जो अब संगीतकार बन गए।जिंदगी कि मुस्ससलता कायम रहती है,कुछ के ना मिलने से जिंदगी कभी नामुकम्मल नही होती है। 

वक्त के साथ यश के घाव भी रहे थे कि उसे फिर एक ख्वाब आया।इस बार ख्वाब मे प्रिया मुस्कुरा नही रही थी।वो क्रोधित थी।यश से नजर मिलते ही उसने मुँह फेर लिया।शायद यश को उसका उत्तर मिल चुका था।उफ्फ.... ये ख्वाब से ख्यालों मे आना और फिर एक ख्वाब बन जाना।वाकई क्या गजब का ख्वाब आया...........................



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