प्रतीक्षा

 "अरे अगर कूदना है तो कुद जा ना, खडा क्यों है?"


कडंक्टर के यह तीखे शब्द सुनकर यश के कदम कुछ सहम से गए। वो इस सोच मे मे पड गया कि पिछली सीट पर अभय होकर सो रहे उसकी अर्धांगिनी पायल व डेढ साल की बच्ची नियती को किसके सहारे छोडकर जाए।


१५ साल बाद....

मम्मी मेरा एडमिट कार्ड कहाँ है? आज मेरा नीट का एन्ट्रेंस है।

पायल एक निजी विद्यालय मे शिक्षिका के पद पर कार्य करती है। हांलाकि अभी तक उसे विद्यालय कि प्रधानाचार्य बन जाना चाहिए था किंतु आंतरिक राजनीति के कारण उसकी पदोन्नति पिछले ३ वर्षो से लंबित चल रही है। उसकी जिंदगी के तीन आधार स्तंभ है- प्रथम अपनी पुत्री को चिकित्सा बनाना, द्वितीय अपनी कक्षा के विद्यार्थियों को उच्चतम मार्ग प्रर्दशित करना व अंतिम प्रतीक्षा। पायल आज भी यश की प्रतीक्षा कर रही है। पिछले पंद्रह सालो मे उसने यश को खोजने का हर सभंव प्रयास किया। उसका यह मानना कि यश लापता है, मृत नही। यघपि कानून ने ७ साल पहले ही यश को मृत घोषित कर दिया है।

१५ साल, पिछले पंद्रह सालो से ना यश कि कोईं खबर आई है और ना ही पायल कि उम्मीद टूटी है। उम्मीद पर तो दुनिया कायम है। उम्मीद प्रायवाणु कि तरह होती है, वो आपको जीवत तो रखती है किंतु सत्य यही है कि प्राणवायु धीमे विष कि भांति आपको मार रही होती है। पायल भी पूरी तरह टूट चुकिं थी, किंतु यह सिर्फ वो ही जानती थी। बाकि सभी लोगो के लिए वो एक दिलखुश महिला थी, जिसके चेहरे पर उदासी कभी आती ही नही थी।

प्रतीक्षा व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देती है। व्यक्ति उसी जगह प्रतीक्षा करता रहता है, वो ना तो प्रतीक्षा त्यागकर कहीं और जा पाता है और ना ही प्रतीक्षा उसको त्यागती है। प्रतीक्षा उसके लिए वो अग्नि कि तरह बन जाती है जो उसे भीषण शीतलहर मे गर्माहट तो देती किंतु यह अग्नि उसकी देह मे प्रदाह होती है।

७ साल बाद

"मेरे जीवन का प्रथम आधार पूर्ण हो गया है। द्वितीय आधार को भी मैनें पूर्ण निष्ठा के साथ निर्वाह किया है। अब अपने जीवन के अंतिम आधार को पूर्ण के लिए मै एक अंनत यात्रा पर जा रही हूँ। मेरी 'प्रतीक्षा' मत करना...." - पायल

पायल का यह खत, नही, यह आखरी खत नियति के लिए किसी ह्दयाघात से कम नही था। किंतु वो बचपन से इस दिन के लिए प्रशिक्षित थी। उसके पिता उसकी माँ और उसे बस मे अकेला छोडकर ना जाने कहाँ चले गए, यह कहानी उसकी माँ ने उसे अनेको बार सुनाई थी। यह कहानी जितनी भयावह थी, उतनी ही अविश्वसनीय। आखिर किस बात कि कमी थी यश के पास, एक अच्छी नौकरी, एक घर, दोस्त-रिश्तेदार, एक सुंदर पत्नी और एक प्यारी बच्ची, सबकुछ तो था। आखिर भला वो क्यों इन सब को छोडकर कहीं जाना चाहेगा? नियति के पास अपने पिता की कोई तस्वीर भी नही थी। उसे जरा भी अंदाजा नही था कि आखिर उसके पिता दिखते कैसे थे। उसके पास अपनी माँ कि सुनाई बिना किसी साक्ष्य कि कहानी पर विश्वास करने के अतिरिक्त उसके पास कोई अन्य विकल्प नही था। इस कहानी से जुडे अन्य किरदारों का नियति को कुछ अता-पता ज्ञात नही था। अब गर उसके पास कुछ था तो वो, 'प्रतीक्षा' .......




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